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इक्कीसवीं शताब्दी में प्रवेश करते समय हमारे लिये धार्मिक परम्परायें आज भी उतनी ही सार्थक हैं जितनी कभी पहले थीं। तिस पर भी अतीत की तरह आज भी भिन्न-भिन्न धार्मिक परम्पराओं के बीच टकराव एवं समस्यायें पैदा होती रहती हैं। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। इस स्थिति पर काबू पाने के लिये हमें भरसक प्रयास करना चाहिये। मेरे अनुभव के अनुसार इन झगड़ो पर काबू पाने की सबसे प्रभाविक विधि है भिन्न-भिन्न धर्मों के बीच निकट सम्पर्क ऐसे सम्पर्क की प्रक्रिया मात्र बौद्धिक स्तर पर नहीं बल्कि गहन आध्यात्मिक अनुभवों के आधार पर भी महत्त्वपूर्ण है आपसी सूझ-बूझ तथा समादर का भाव पैदा करने हेतु यह एक सशक्त विधि है। इस प्रकार के आदान-प्रदान द्वारा समुचित समरसता की दृढ़ नींव स्थापित की जा सकती है। मेरी धारणा है कि विभिन्न धार्मिक परम्पराओं में समरसता महत्त्वपूर्ण एवं परमावश्यक है। मेरा सुझाव है कि अलग अलग धार्मिक पृष्ठभूमि वाले बुद्धिजीवियों के बीच सम्मेलनों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये ताकि वे अपनी अपनी परम्पराओं की समानताओं तथा असमानताओं को पहचान सकें। और भिन्न-भिन्न परम्पराओं के वे लोग जिन्हें कुछ गहन आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त हुये हों आपस में मिले। यह जरूरी नहीं कि वे प्रकाण्ड विद्वान् हों हाँ वे विशुद्ध चर्यावान जरूर हों जो परस्पर एक साथ बैठें तथा धर्म चर्या जनित अपनी उपलब्धियों को साँझा करें। मेरे स्वयं के अनुभव के अनुसार सीधे तथा सार्थक रूप में एक दूसरे के प्रबोधन हेतु यह एक सशक्त तथा प्रभावी तरीका है।
ISBN-10 : 9383441089
ISBN-13 : 978-9383441082