Rs.210.00
Vidya ki Paramparik Shetro ka Itihas Tibet me Vidya ke Shetro ke Parsar ka Sankshipt Itihas (Hindi)
विद्या के पारम्परिक क्षेत्रों का इतिहास
विद्या के पारम्परिक क्षेत्रों का इतिहास तिब्बत में बौद्ध धर्म के प्रसार के प्रारम्भिक व बाद के समय में पारम्परिक विद्या क्षेत्रों के विकास का संक्षिप्त इतिहास है। इसमें तिब्बत आने वाले अनुवादकों व पण्डितों तथा उनके द्वारा स्थापित किये गए मठों तथा तिब्बती ग्रन्थों का उनकी अपनी भाषा में अनुवाद का भी उल्लेख है और आगे मंगोलिया और चीन में बौद्ध धर्म के प्रसार पर भी प्रकाश डाला गया है।
आज के अति सम्मानित तिब्बती पण्डित मुङ्गे सम्तेन (1914-1993) की यह कृति इनकी संगृहीत रचनाओं में से तीसरा अङ्क है और इस विषय की एक विश्वसनीय स्रोत है।
विद्या के पारम्परिक क्षेत्रों का इतिहास उनके लिए अनिवार्य है जो तिब्बती साहित्य का इतिहास पढ़ना चाहते हैं।
मुहगे सम्तेन का जन्म 1914 में दक्षिणी आम्दो में हुआ था। इन्होने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा मुङ्गे टाशि खोर्लो मठ में पायी और बाद में ये लाब्रांग टाशि ख्यिल के विशाल मठ में दाखिल हुए जहाँ इन्होंने सूत्र तंत्र व सभी पारम्परिक विज्ञानों में दक्षता प्राप्त की। 35 वर्ष (1947) की आयु में मुहगे सम्तेन को गेशे धोरम्पा की उपाधि मिली। तब से इनकी ख्याति दूर दूर तक फैल गयी।
1949 में तिब्बत में चीन के कब्जे के बाद तिब्बती धर्म और संस्कृति का विनाश होने लगा और इस विनाश का चरमोत्कर्ष कल्चरल रेवोलुशन (सांस्कृतिक आन्दोलन) में हुआ। मुहगे सम्तेन को समझ आया कि तिब्बती लोगों के बचाव के लिए धर्म और संस्कृति का बचना कितना आवश्यक है और इन्होंने स्वयं तिब्बती धर्म व संस्कृति को उसकी पूर्ववत प्रतिष्ठा दिलाने का बीड़ा उठाया। इन्होंने छह खण्ड व तिब्बती शिक्षा के विभिन्न विषयों पर लेख लिखे हैं।
ISBN 13: 9789390752881
Language: Hindi